HYPOCHONDRIASIS

#HYPOCHONDRIASIS 
  इस रोग में रोगी का मन किसी घातक रोग के हो जाने के या उसके होने के डर से घिरा रहता है। ये विचार शरीर में हुई हलचल या अहानिकारक लक्षणों के महसूस करने से उत्पन्न होता है जिसका कोई चिकित्सीय आधार नहीं होता है। इस रोग के ज्यादातर रोगी उदर सम्बन्धी लक्षणों के साथ प्रस्तुत होते हैं। रोगी के मन के इस अन्यथा सोच से घिरे रहने की वजह से उसके जीवन के व्यक्तिगत, व्यवसायिक और सामाजिक कार्यक्षमता पर बुरा प्रभाव पड़ता है और वह अन्य ज़रूरी कार्यों को दरकिनार कर देता है।
⏩ये बीमारी कितनी व्यापक है?
एक शोध के अनुसार एक फ़िजीशियन की क्लिनिक में ऐसे रोगी 4-6 प्रतिशत तक हो सकते हैं और अधिकतम 15 प्रतिशत तक हो सकते हैं। ऐसे लोग ये मानने को तैयार नहीं होते कि उनकी ये समस्या मानसिक समस्या है। इसलिए वो साइकिएट्रिस्ट के पास ना जाकर अलग अलग दूसरे डाक्टरों को दिखाते रहते हैं।सामान्यतः यह रोग 20-30 वर्ष की आयु में प्रारंभ हो जाता है।
⏩ इस बीमारी का कारण?
इस रोग में रोगी का दिमाग सामान्य सी होने वाली शारीरिक प्रतिक्रिया को बढ़ा-चढ़ाकर पढ़ता/महसूस करता है। व्यक्ति के पेट में वायु का दवाब, जो की नॉर्मल होता है, दर्द के रूप में महसूस होता है। रोगी की तंत्रिकाएं शरीर की समान्य प्रतिक्रिया पर भी विध्युत तरंगे दिमाग को अधिक मात्रा में सन्देश पहुँचाने लगती हैं जिससे व्यक्ति को शारीरिक रोग होने का आभास होता है।
इस तरह से रोगी किसी गंभीर रोग से ग्रसित हो जाने वाली सोच घिरा रहता है, जैसे कि रोगी कहेगा मुझे टी० बी० या कैंसर है। समय बीतने के साथ यह सोच पहले वाले रोग से हटकर किसी दूसरे रोग पर भी केन्द्रित हो सकती है जैसे की रोगी पहले एड्स होने की बात करता था और अब कैंसर होने की। बारम्बार नकारात्मक लैब रिपोर्ट आने के बाद भी यह सोच बदलती नहीं है और दिमाग में घर करे रहती है। फ़िजीशियन के बार-बार तसल्ली देने के बाद भी रोग होने की सोच बनी रहती है। ऐसे मरीजों को लगता है कि उनकी बीमारी पकड़ में नहीं आ रही इसलिए बार बार बहुत सारी जांचे कराते रहते हैं लेकिन सब नॉर्मल होती हैं।

Dr S B Mishra Psychiatrist

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